दोस्तों हादसा छोटा हो या बड़ा वह हमेशा भयानक होता है उसका बड़ा नुकसान होता है जैसा कि उड़ीसा में रेल हादसा जो हुआ है उसमें तकरीबन 287 से लेकर 300 लोग मारे गए हैं ऐसे ही हाथ से इंसानों को इस बात का सबक सिखाते हैं कि हमें ऐसे आंसुओं के लिए पहले से कोई तैयारी करके रखना चाहिए लेकिन रे रास्तों से कैसे बचा सकता लेकिन रेल हाथों से कैसे बचा जा सकता है हालांकि इसके लिए 11 साल पहले ही भारतीय रेल ने एक कवच का निर्माण किया था वह कवच अभी तक सिर्फ 35% ट्रेनों में ही लगा है अभी भी 65 परसेंट ट्रेनों में यह कवच नहीं लगा है कहा जा रहा है कि अगर यह सुरक्षा कवच होता तो इस तरह का हाथ यह एक्सीडेंट नहीं होता तो आज के इस ब्लॉक में हम आपको बताएंगे कि वह कवच क्या है और किस तरह से काम करता है
सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं के कवच क्या है ?
यह रेल कवच एक तरह का ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम हैइस ए टी सी एस यानी ट्रेन कोलाइजन अवॉइडेंस सिस्टम भी कहा जाता हैइसको 2012 में बनाया गया था और इसको ट्रेन की मोबाइल स्पीड को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैइसको ट्रेन को पटरी पर लगाकर ट्रेन की ओवरस्पीडिंग को कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है और यह एक तरह से काम भी करता है
किसी भी तरह के खतरे की आशंका होने पर यह सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है और चाहे ट्रेन की स्पीड कितनी भी तेज क्यों ना हो यह ट्रेनों को आपस में टकराने नहीं देता है उन्हें टकराने से पहले ही रोक लेता है
इस सिस्टम को डिजाइन करने का श्रेय आरडीएसओ को जाता है यह सेफ्टी इंटीग्रेटेड लेवल 4 का सिस्टम है
अब यह जानते हैं कि आखिर काम कैसे करता है ?
इस टेक्नोलॉजी में इंजन में माइक्रोप्रोसेसर और जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम लगाया जाता है जो कि सिग्नल सिस्टम और कंट्रोल टावर से जुड़ा होता है इसका मकसद दो ट्रेनों को एक ही पटरी पर हो तो एक दूसरे से टकराने से रोकता है लेकिन दोनों ही ट्रेनों में यह सिस्टम होना चाहिए अगर यह सिस्टम सिर्फ एक ट्रेन में है और दूसरी में नहीं है तो पहली ट्रेन तो रुक जाएगी पर दूसरी ट्रेन जिसमें यह सिस्टम नहीं लगा है वह पहले ट्रेन से आकर टकरा जाएगी इसलिए जरूरी है कि इस सिस्टम को सभी ट्रेनों में इंस्टॉल किया जाए
अब पॉइंट वाइज समझते हैं कि एक सिस्टम काम कैसे करता है
रेड सिगनल होने की दशा में 2 किलोमीटर पहले ही ड्राइवर को उसके इंजन में यह डिस्प्ले में दिख जाएगा
अब अगर ड्राइवर सिग्नल को देख नहीं पाता और स्पीड बढ़ा देता है तो यह कवच एक्टिवेट होकर ड्राइवर को तुरंत अलर्ट भेजेगा और ब्रेकिंग सिस्टम को एक्टिवेट कर देगा इस तरह से दो आमने सामने से आ रही ट्रेनों को टक्कर से रोका जा सकेगा
अब मान लीजिए कि दोनों ट्रेनिंग एक ही लाइन पर एक ही दिशा में जा रहे हैं तो जो ट्रेन पीछे चल रही होगी उसमें कवच सिस्टम ऑटोमेटिक एक्टिवेट होकर ट्रेन के ब्रेक को एक्टिवेट कर देगा और ट्रेन को टक्कर होने से पहले ही रोक देगा
अगर कोहरा होता है और ड्राइवर रेट या ग्रीन सिग्नल नहीं देख पाता तो अभी यह सिस्टम काम करता है और मौसम को देखते हुए अपने आप एक्टिवेट होकर इमरजेंसी के दौरान एसओएस सिग्नल कंट्रोल रूम भेज सकता है
यह खबर चेस्टर रोलबैक फॉरवर्ड साइड टक्कर जैसी इमरजेंसी में भी स्टेशन मास्टर और लोको पायलट को तत्काल सिग्नल भेजने में सक्षम है
इसको लगाने में कितना खर्च आता है ?
यूरोप और अमेरिका या यूरोप के दूसरे यूरोपीय देशों में भी जो टेक्नोलॉजी यूज़ की जाती है उसको लगाने का खर्चा बहुत ज्यादा होता है वहां खर्चा लगभग 2 से ढाई करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर होता है जब के कवच एक स्वदेशी प्रोडक्ट है इसे भारत में ही बनाया गया है इसलिए यह बाहर के मुकाबले काफी सस्ता है यहां पर इस कवच को इंस्टॉल करने में प्रति किलोमीटर 3000000 से ₹5000000 का खर्च आता है यानी यह यूरोपीय सिस्टम से एक चौथाई कीमत का ही है और काम भी बहुत अच्छा करता है
अभी तक कितनी ट्रेनों में यह कवच इंस्टॉल हुआ है
पिछले साल 2022 में रेल मंत्री अश्विन ने इस बात की घोषणा की थी कि जल्दी ही भारतीय रेलों को इस खबर से लैस किया जाएगा लेकिन अभी तक इस पर ज्यादा काम नहीं हुआ है सिर्फ सिकंदराबाद में ही कुछ इंजनों में इसको इंस्टॉल किया गया है भारत में कुल 13215 इलेक्ट्रिक इंजन है इनमें से सिर्फ 65 इंजनों में ही इस सिस्टम को इंस्टॉल किया गया है ओडिशा हादसे के बाद रेल मंत्री ने इस बात का ऐलान किया है कि जल्द ही इस पर दोबारा काम शुरू किया जाएगा और लक्ष्य रखा गया है कि 2023 के अंत तक ज्यादा से ज्यादा इंजनों में और तकरीबन 5000 किलोमीटर रेल लाइन में इस सिस्टम को इंस्टॉल किया जा सके
सबसे पहले इसको कब प्राइस किया गया था ?
2012 में मनमोहन सिंह सरकार ने इस सिस्टम को सबसे पहले ट्राई किया गया थाअक्टूबर 2012 में इस सिस्टम का प्राइस हैदराबाद में किया गया था उस समय इस सिस्टम को पाठ ब्रेकिंग टेक्नोलॉजी कहा गया था यानी 2:30 चलती हुई ट्रेनों को टक्कर से रोकने वाला सिस्टम
इस टेस्टिंग के लिए क्या प्रयोग किया गया था
इसकी टेस्टिंग के लिए टी सी एस टेक्नोलॉजी से लैस दो ट्रेनों को एक ही दिशा में एक ही पटरी पर चलने की इजाजत दी गई थी एक ही दिशा में एक ही पटरी पर चलाने की इजाजत दी गई थीइसके बाद दोनों ट्रेनें एक दूसरे से टकराने से 200 मीटर पहले ही अपने आप रुक गई थी इसलिए इस सिस्टम को सफल माना गया था और पांच ब्रेकिंग टेक्नोलॉजी का नाम दिया गया था
इसकी दूसरी सफल टेस्टी 2022 में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की थी 10 मार्च 2022 को रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव और रेलवे चेयरमैन बोर्ड के अधिकारी दो अलग-अलग ट्रेनों में जो कि पीसी सिस्टम से लैस थी बैठकर इस सिस्टम का परीक्षण किया था और पाया कि दोनों ट्रेनें एक दूसरे से टकराने से 380 मीटर पहले अपने आप पूरी तरह से रुक गई थी